हंस और मूर्ख कछुआ की कहानी panchtantra ki kahaniya
एक बार की बात है एक कछुआ और दो हंस आपस में बहुत अच्छे मित्र थे।
और कछुआ जिस तालाब में रहा करता था उस तालाब में 1 साल बारिश नहीं होने के कारण और तालाब बिल्कुल ही सूख गया था।
तब कछुए ने एक योजना को बनाया और हंस को बुला कर के कहा तुम” एक लकड़ी लाओ”
मैं उस लकड़ी को बीच में दांतो से दवा लूंगा और तुम लोग उसके किनारों को अपनी चोट से दबाकर के उड़ जाना उसके बाद फिर हम तीनों किसी दूसरे तलाब में चले जाएंगे।
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हंस मान गया और उन्होंने कछुओं को चेतावनी दे दी”तुम्हें पूरे समय अपना मुंह बंद रखना होगा जब तक तुम उड़ते रहोगे।
वरना तुम सीधे धरती पर आगे रहोगे और मर जाओगे मुंह खोलो गे तो।
कछुआ तुरंत ही मान गया और जब सब कुछ तैयार हो गया तो हंस कछुए को लेकर के और चले।
जब रास्ते में कुछ लोगों की नजर हमसफर और कछुए पर परी।
वह उत्साह में आकर चलाने लगे देखो यह हंस कितना चतुर है।
वह अपने साथ-साथ कछुए को भी लिया जा रहे हैं।तब कछुए से रहा नहीं गया और वह उन लोगों की को बताना चाहता था कि यह विचार तो उसके मन में आया था ना कि हंसों के मन में।
यह बात वह बोल पड़ा लेकिन जैसे ही उसने अपना मुंह खोला, लकड़ी उसके मुंह से छूट गई और वह सीधे धरती पर आकर गिर पड़ा और मर गया।
अगर कछुए ने अपने अहंकार पर थोड़ा सा नियंत्रण कर लिया होता तो वह भी सुरक्षित नए तालाब में पहुंच जाता।
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